Tuesday, August 30, 2011

उफ!ये फैशन



ये दुनिया रंग-बिरंगी, इस दुनिया के रंग-ढंग निराले। अब अगर हम फैशन की बात करें तो नित-नए कपड़े, गहने, जूते, बैग और न जाने क्या-क्या लाया जा रहा है, बाज़ारों में आजकल। यहाँ चीन में तो हर जगह चलते-चलते ऐसे-ऐसे फैशन के रंग में लबालब लोग मिलते हैं कि बस क्या कहना। अब कल की बात लिजिए मैं ऑफिस से घर ट्रेन से जा रही थी। सीट न मिलने के कारण खड़ी हुई थी और सामने आकर खड़े हुए कुछ युवा लड़के-लड़कियाँ। मैंने उन्हें देखा और बस देखती ही रही कारण था उनका चश्मा। अब चश्मे में क्या खास हो सकता है। चश्मे का फ्रेम और क्या। जी नहीं, खास बात यह थी कि चश्मा था, फ्रेम था लेकिन कांच (लैंस) नहीं दिख रहा था। पहले तो लगा शायद टूट गया है लेकिन चारों लोगों का एक साथ चश्मे का फ्रेम टूट जाए ये बात अटपटी लग रही थी और टूटे हुए लैंस का फ्रेम पर कोई नामोनिशान न हो यह भी अजीब बात लग रही थी। बहुत देर तक मैं उन्हें देख रही थी, उनका ध्यान भी रुक-रुककर मेरी तरफ जा रहा था कि भई मैं इतना ध्यान से उनके चेहरे की तरफ क्यों देख रही हूँ क्योंकि मुझे लग रहा था कि कांच तो ज़रुर होगा लेकिन मैं उसे देख नहीं पा रही हूँ। मेरी जिज्ञासा शांत नहीं हो रही थी और रह-रहकर मैं उनसे बात भी करना चाह रही थी लेकिन हिचकिचा रही थी। अब आदत से मज़बूर जब तक दिमाग में चल रहे प्रश्न का संतोषजनक उत्तर ना मिले तब तक चैन नहीं मिलता। कि भई, ये क्या अजब-गजब फैशन है, चश्मा तो पहनना है मगर बिना कांच के, लैंस के। बिना नंबर का चश्मा तो पता था, ये नई चीज़ आज पता चली। अभी मन में ये सब चल रहा था कि उन चारों में से एक ने अपनी आँख खुजलाई वो भी फ्रेम के आगे के हिस्से से उँगली डालकर। अरे, ये तो कन्फ्रम हो गया कि फ्रेम बिना लैंस के है। यह देख मैं मुस्कुराने लगी और मुझे देख उन्होंने भी स्माइल पास की। हममम.......ये अच्छा मौका है बातचीत शुरु करने का। मैंने कहा मुझे आप सबके चश्मे बहुत अच्छे लग रहे हैं, ये बिना लैंस के कहाँ से लिए आपने ?’उन्होंने बाज़ार का नाम बताया और मैंने अपने दिल की बात उडेलने में देर किए बिना पूछ ही डाला ये ऐसे चश्मों में क्या खास है। तो उनका जवाब था- इटस इन थिंग नाओ अ डेयस। ऐसे चश्मे आपको फंकी लूक, कूल डूड बनाते हैं और आप जो चाहे, जैसा फ्रेम चाहे पहन सकते है साथ-साथ लैंस बनवाने के झंझट से भी बच जाते हैं। सब से अच्छी बात इसे वो लोग भी पहन सकते हैं जिनकी आँखें फिलहाल ऊपर वाले की कृपा से ठीक-ठाक हैं। अब ये सुन कौन नहीं कहेगा, वाह रे फैशन। तेरे नाम से क्या-क्या गजब नहीं ढाहे हमने। और कोई उनसे भी पूछे जिनकी आँखें चश्मे पर निर्भर  रहती हैं। 

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