Wednesday, October 12, 2011

क्या तुमने सलाह ली !


आज मैं और मेरी एक चीनी कॉलिग(सहकर्मी) दोपहर का खाना खाने एक रेस्टरॉ गए थे और उसके बाद हम खरीददारी करने एक शॉपिंग मॉल में गए। चलते-चलते हम एक जूलरी शॉप में घुस गए और वहाँ सोने के गहने देखने लगे। मेरी सहकर्मी हाथ में पहनने वाले ब्रेसलेटस देख रही थी और उसे कुछ डिजाइनस पसंद आए तो उन्हें पहन कर ट्राई भी करने लगी।
मुझसे भी पूछा कि तुम भी अपनी राय दो। कुछ देर तक यह ब्रेसलेटस पहनने-उतारने का सिलसिला चलता रहा। मेरी राय भी लेती रही और आइने की भी।
      कुछ देर बाद फैसला ले ही लिया कि भई कौन-सा ब्रेसलेट इनकी कलाई की शोभा बढ़ाने में कामयाब रहा और उसने अपना फैसला मुझे भी सुनाया कि मैं यह खरीदने वाली हूँ। तो मैंने पूछा- अभी या बाद में। उसका जवाब था पसंद अभी आया है तो खरीदूँगी भी अभीठीक है, मरजी तुम्हारी, मैंने कहा। खरीददारी कर हम दोनों निकले दफ्तर जाने के लिए। टैक्सी में बैठ हम इधर-उधर की बातें कर रहे थे, लेकिन मैं इंतज़ार कर रही थी सही मौके का। क्योंक्योंकि मेरे दिमाग में अगर कोई सवाल आता है और मुझे अगर उसका जवाब नहीं मिलता तो मैं बेचैन हो जाती हूँ। ये आदत बचपन से है लेकिन चीन आने के बाद यह आदत तो कुछ ज्यादा ही पक्की हो गई है क्योंकि यहाँ अधिकतर सवालों के जवाबों का अनुमान खुद ही लगाना पड़ता है। और जो हमारी भाषा समझ सकते हैं तो उनसे सवाल पूछने का मैं कोई मौका नहीं जाने देती। खैर, मैं बात कर रही थी अपने सवाल की जो मैंने अपनी चीनी सहकर्मी से पूछा, तुम अपने निजी जीवन में कोई भी फैसला लेने से पहले अपने पति से सलाह लेती हो। उसने कहा, कभी-कभी। मैंने फिर पूछा, कीमती या बड़ी चीज़ खरीदने से पहले अपने पति से सलाह लेती हो। उसने कहा, कभी-कभी। मैंने फिर पूछा, तुमने आज अपने लिए सोने का ब्रेसलेट खरीदा है, तो क्या तुमने सलाह की थी कि तुम अपने लिए जूलरी खरीदना चाहती हो। उसने जवाब दिया, क्यों, इसमें पूछने वाली या सलाह लेने वाली क्या बात हैमेरा मन किया मैंने ले लिया, मेरी अपनी मर्ज़ी है। उसका जवाब सुन मैं शांत हो गई और मैंने उससे काफी देर तक कोई बात नहीं की।
      उसकी बात तो ठीक थी, उसने ऐसी कोई गलत बात भी नहीं की तो फिर मुझे उसकी बात अजीब क्यों लग रही थी। शायद मैं हमेशा सलाह लेती हूँ या मैं ऐसा नहीं कर पाई कभी इस बात का मलाल हो मेरे मन में। ना..........ऐसी तो कोई बात नहीं। मन में सवाल-जवाब चल रहे थे कि सहकर्मी ने बीच में पूछा क्या आप अपने जीवन के सारे फैसले अपने पति से पूछ कर करती हैं? मैं सवाल सुन कुछ सैकेंड तक तो उसे देखती रही, मेरे लिए उसके सवाल के जवाब देने से ज्यादा ज़रूरी था चीन में महिलाओं की सोच, उनके विचारों के बारे में जानना। मैंने कहा पहले तुम बताओ कि तुम्हारे निजी जीवन में पति की सलाह लेना न लेना कितने मायने रखता है। तो उसका जवाब था- हम दोनों की पहचान अलग-अलग है। हम दोनों एक-दूसरे से सलाह तभी लेते हैं जब हमें साथ मिलकर कोई बड़ा फैसला करना होता है। जैसे कि मिलकर मकान खरीदना या कार खरीदना। उसके अलावा हम ज्यादातर अपनी मन-मर्जी ही करते हैं। बस इतना ही...............मेरी आवाज़ में हैरानी, परेशानी और न जाने क्या-क्या था। अब आप बताओ उसने कहा।
      मैंने मुस्कुराते हुए कहा, मैं तो शायद सारे काम अपने पति से सलाह लेकर ही करती हूँ। उसके चेहरे पर भी वही भाव दिख रहे थे जो कुछ देर पहले मेरे चेहरे पर थे। शायद इसे ही तो अंग्रेज़ी में cultural difference कहते हैं। मेरी सहकर्मी के अनुसार महिलाओं के आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने से महिलाओं को वो सारे अधिकार मिल जाते हैं जिससे वे आज़ाद हैं अपना जीवन अपनी मर्जी से जीने के लिए। लेकिन अगर हम भारतीय महिलाओं की बात करें जो आर्थिक रूप से स्वतंत्र तो हैं लेकिन उनकी नज़र में आज भी पति से सलाह लेना या उस पर आश्रित रहना उनके व्यक्तित्व का हिस्सा है। इसे हम अपनी संस्कृति का जामा पहना सकते हैं। क्योंकि अधिकतर ऐसा, कुछ महिलाएँ अपनी मर्जी से करती हैं और कुछ मज़बूरी से तो कुछ कहेंगी कि, परिवार का क्या मतलब अगर सब अपनी मर्जी करें। खैर, यहाँ मर्जी किसकी और किसकी नहीं यह मायने नहीं रखती जितना कि यह जानना कि धरती के इस कोने में महिलाओं की पहचान और व्यक्तित्व केवल और केवल अपना है। वे जितना बेहतर दूसरों के लिए जीना जानती हैं उतना ही अपने लिए भी। त्याग और समझौते केवल इनके खाते में बढ़ते हुए नहीं दिखते यहाँ। क्या हम कुछ अजीब हैं या ये। इस सवाल का जवाब अब भी बाकी है। टैक्सी से उतर हम चल पड़े दफ्तर की ओर।

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