Friday, October 26, 2012

आप को न भूल पाएँगे हम- सुनील गंगोपाध्याय जी


प्रख्यात साहित्यकार और साहित्य अकादमी के अध्यक्ष सुनील गंगोपाध्याय जी का 23 अक्टूबर 2012 को दिल का दौरा पड़ने से दक्षिण कोलकाताClick here to see more news from this city स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। वे 78 वर्ष के थे। बहुत दुख होता है जब कोई आपके बीच से अचानक चला जाता है।
पिछले साल यहाँ बीजिंग में मुझे उनसे मिलने का मौका मिला। रविन्द्रनाथ टैगोर जी की 150 वीं जयंती के आयोजन के दौरान सुनील गंगोपाध्याय जी के साथ विभिन्न भारतीय भाषाओं के जाने-माने लेखक और लेखिका यहाँ बीजिंग में 3 दिवसीय चीन दौरे के लिए आए थे। सुनील गंगोपाध्याय जी बंगाली गद्य के बेहतरीन लेखकों में से एक जाने-माने लेखक, जिनकी गिनती सर्वश्रेष्ठ समकालीन कवियों में की जाती है। 200 पुस्तकों को लिखने वाले सुनील जी एक विपुल लेखक थे जिन्होंने अलग-अलग शैलियों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, लेकिन कविता को अपना "पहला प्यार 'मानते थे। कविता गद्य में सुनील जी अपनी अनोखी शैली के लिए माने जाते हैं। उन्होंने लघु कथा, उपन्यास, यात्रा वृतांत और बच्चों के लिए कथा लिखकर भी अमूल्य योगदान दिया। Listen
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अपने आप में लेज़ेंड जाने जाते। आज की युवा पीढ़ी, उभरते लेखकों और कवियों के आइडल, प्रेरणा सोत्र जाने जाते हैं। उनकी द्वारा लिखे गए दो उपन्यास अरण्य दिन-रात्रि और प्रतिध्वनि पर सत्यजीत रेय द्वारा फिल्में भी बनाईं गई। सरस्वती सम्मान, आनंद पुरस्कार और साहित्य अकादमी अवार्ड से इन्हें सम्मानित भी किया गया। वे नील उपाध्याय के अलावा अन्य नामों से भी लिखते। कवि, लेखक, उपन्यासकार सुनील जी से मिलने का और उनसे साक्षात्कार करने का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ। जब मैं उनके पास गई और कहा कि आपसे कुछ बातें करना चाहती हूँ तो मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा- इट्स मॉय हॉनरमैंने उन्हें अपना परिचय दिया और पूछा कि क्या हम हिन्दी में बात कर सकते हैंतो वे फिर मुस्कुराए और सरलता से कहा- हम तो हिन्दी में बात कर सकता नहीं, आमार भाषा तो बांग्ला है पर हिन्दी तो हम सब का भाषा है। मैं पूरा कोशिश करेगा। अगर अच्छा नहीं तो आप मुझे बोलना। बातचीत के दौरान उनके सरल व्यवहार से मैं बहुत प्रभावित हुई। उनकी बातों से साफ जाहिर था कि वे बहुत ही जिंदादिल और दिल की बात साफ-साफ कहने वालों में से थे। जब मैंने उनसे पूछा कि, क्यों आप कविता को अपना पहला प्यार मानते हैं?” पहले मुस्कुराए और कहा कि मैं एक लड़की से बहुत प्यार करता था, उसके लिए मैं कविताएँ लिखता लेकिन उसकी शादी किसी और के साथ हो गई लेकिन मैं कविताएँ लिखता रहा उसकी याद में। विदेश से पढ़ाई कर भारत वापस आने का उद्देश्य केवल लेखन था। इस पर जब बात की तो कहा कि मेरी माँ बहुत खुश होती थीं जब मनीआर्डर से मेरे लिखे गए लेखों के पैसे आते थे। उन्होंने बताया कि उनकी माँ सबसे कहती कि सब लोगों को सुबह से शाम 10 से 5 काम करना पड़ता है तब जाकर वेतन मिलता है। मेरा बेटा तो घर में बैठकर लिखता है और कमाता है। जब उनसे साहित्य अकादमी के अध्यक्ष होने के विषय में पूछा तो उन्होंने आशा जताई कि भविष्य में अनेक भारतीय भाषाओं की पुस्तकों का अनुवाद चीनी भाषा में तथा चीनी भाषा की पुस्तकों का अनुवाद विभिन्न भारतीय भाषाओं में हो सके ताकि पुस्तकों, उपन्यासों के जरिए एक दूसरे के साहित्य, संस्कृति तथा लोगों की समझ को बेहतरीन तरीके से समझा जा सके और दूरियों को कम किया जाए। बातचीत के दौरान ये कहीं महसूस नहीं हुआ कि वे हिन्दी भाषी नहीं। सुनील गंगोपाध्याय जी जैसे लोगों के साथ समय बिता जीवन को नई दिशा मिलती है। उस दिन उनके साथ बिताए तीस मिनट मेरे जीवन के सबसे यादगार पल बन गए और जब अचानक ये शोक समाचार मिला तो पुरानी यादें फिर ताज़ा हो गईं। उस दिन उनकी बांग्ला भाषा में कही आखिरी पक्तियाँ मुझे याद आ रही है-आमार भालो भाषा कोनो जन्म होय ना मृत्यु होय ना, केनो ना आमी उन्नो रोकोम भूलेर गोए ना, शोरिरे निए जन्मो छिए नाम। आमार किए नाम राखे नी,तीन ते छाठे छोदो नामे, आमार भ्रोमोण मोर्ते धामे। आपको कभी भूला न पाएँगे- सुनील दा!!

2 comments:

  1. RIP.... and May GOD Bless his second Life with his GF....

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  2. Hey there hkripalani information or the article which u had posted was simply superb and to say one thing that this was one of the best information which I had seen so far, thanks for the information #BGLAMHAIRSTUDIO

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