भारत से चीन घूमने आईं मेरी एक सहेली
चीन को देखकर उसकी तारीफ करते हुए नहीं थक रहीं। क्या ऊँची-ऊँची बिल्डिंगस,
लंबी-चौड़ी, साफ-सुथरी सड़कें, आलीशान मकान, रात को चमचमाती लाइटों से रोशन शहर।
सड़कों पर सुंदर-सुंदर कपड़े पहने लोग। क्या अनुशासन मेंटेंन किया है, इस देश ने।
यहाँ रहकर यह सभी बातें बड़ी आम-सी लगती हैं, क्योंकि ये सब तो हम रोज़ ही देख रहे
हैं। लेकिन मेरी सहेली का एक वाक्य जो मेरे दिमाग मैं बार-बार घूम रहा था- सड़कों
पर सुंदर-सुंदर कपड़े पहने लोग। जी, आपको भी अजीब लग रहा है न। क्या कोई उत्सव,
त्योहार था जो सभी सजे-धजे सड़कों पर निकले। ना जी, ऐसा कुछ नहीं था, तो? सस्पैंस जैसी कोई बात नहीं। यहाँ सड़क
पर, ट्रेन में, बस में, शॉपिंग मॉल में, किसी भी पब्लिक प्लेस पर आपको सभी लोग
संवरे बाल, साफ-सुथरे, इस्त्री किए कपड़ों में नज़र आते हैं। सभी आर्थिक संपन्न हो
ऐसा तो नहीं है, इसलिए तो यहाँ सड़कों पर, ट्रेनों में या बसों में किसी को भी
देखकर आप पहचान नहीं सकते कि ये कोई अधिकारी है या सफाई कर्मचारी। शायद यहीं कारण
भी है कि यहाँ किसी काम को छोटा-बड़ा के ब्रैकेट में नहीं रखा जाता। हर काम को
इज़्जत दी जाती है और हर काम करने वाले को भी। आबादी और अमीरी-गरीबी के आकड़े लेकर
बैठे तो चीन-भारत एक-दूसरे के आगे-पीछे चलते हैं। तो फिर क्या अंतर है, ऊँची-ऊँची
बिल्डिंगस, लंबी-चौड़ी सड़कें, आलीशान मकान तो भारत में भी हैं। ज़रूरत है, अपनी
छवि को बनाए रखने की। अपने आप को मेंनटेन करने की, अब सवाल उठता है लोगों के पास
पैसे नहीं मेंनटेन क्या खाक करेंगे। ऐसा नहीं की यहाँ गरीबी नहीं, यहाँ
परेशानियाँ, दुःख-तकलीफ नहीं। उसके बावजूद यहाँ के लोगों को देखकर आपको इसका एहसास
नहीं होता। बड़े-बुजुर्गों का कहना है- सूरत से ज्यादा सीरत मायने रखती है। सीरत
देखो सूरत मत देखो। लेकिन क्या आपको नहीं लगता सीरत जानने के लिए सूरत से होकर
गुजरना पड़ता है। प्रैसंटेशन बहुत मायने रखती है। और वैसे भी कहा जाता है न अगर आप
खुद को बना-संवार कर रखते हैं तो आप खुद से प्यार करने लगते हैं आप में एक अलग तरह
का आत्मविश्वास जागता है और इसे फील गुड फैक्टर कहते हैं। यू फील गुड यू थिंक गुड।
अच्छा दिखोगे तो अच्छा सोचोगे। अच्छा सोचोगे तो अच्छा करोगे। देश उसके लोगों से
बनता है और लोग देश की छवि बनाते हैं। आज चीन में आने वाले पर्यटक यहाँ के लोगों
को देखकर समझते हैं कि यहाँ सब संपन्न हैं। ये उन्हें भले ही उनके साधारण, सस्ते
लेकिन साफ-सुथरे, इस्त्री किए कपड़े देखकर उसका अंदाजा लगाते हैं। यहाँ चाहे घर
में काम करने वाली आई हो या दफ्तर में, सड़क पर सफाई कर्मचारी या दफ्तर में काम
करने वाले क्लर्क, सैकरेटरी या अधिकारी सब खुद को अप-टू-डेट रखते हैं। यह है
फर्स्ट इम्प्रेशन की बात, लोगों का स्वभाव कैसा है..... ये सब बाद की बातें हैं।
मैं चाहूँगी कि मेरी सहेली मेरा यह ब्लॉग पढ़े और वो जैसा बढ़िया फर्स्ट इम्प्रेशन
चीन का लेकर गई है वैसा ही हमारे देश में आने वाले पर्यटक भारत का बढ़िया इम्प्रेशन
लेकर अपने घर लौटे।
हेमा कृपलानी
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