हर रोज़ समाचार-पत्रों में घोटालों, घटनाओं, दुर्घटनाओं के साथ-साथ एक खबर अब आम हो गई है- फलां-फलां शहर या गाँव में लड़की का रेप, गैंगरेप और हम जिस मिट्टी के बने हैं उसकी परत इतनी मोटी हो गई है कि जल्द ही हमें कुछ भी सहने की, झेलने की अजब-सी सहनशक्ति विकसित हो गई है। उसके साथ-साथ स्मरण-शक्ति कमज़ोर क्योंकि रोज़ इतनी सारी दुर्घटनाएँ होती हैं और जब तक हमारे और हमारे अपनों के साथ सब ठीक चल रहा है तब तक क्या फर्क पड़ता है और हम अकेले कर क्या सकते हैं। हम में से बहुत सारे लोगों के पास बेहतरीन उपाय भी हैं कि ऐसे लोगों के साथ क्या किया जाना चाहिए ? मसलन, ऐसे लोगों को तो फांसी लगा देनी चाहिए, सड़क के बीच खड़ाकर गोली मार देनी चाहिए, कोड़े लगाने चाहिए और भी बहुत सारे तरीके हैं इन्हें सज़ा देने के। फिर भई यह तो सरकार का काम है, सख्त कानून बनाए बलात्कार जैसे घिनौने अपराध के लिए। मीडिया की मेहरबानी से अगर किसी रेप केस की जाँच के लिए हल्ला मचाया जाता है तो कोई हाई-प्रोफाइल पर्सनेलिटी, नेता या नेत्री जी किसी छोटे से गाँव या कस्बे में हाल-चाल जानने और झूठे वादे करने पहुँच जाएँगे और टी.वी चैनल वालों को 2-3 दिन चौबीसों घंटे का मसाला मिल जाएगा। जी हाँ, जितना पढ़ने में बुरा लगा उतना मुझे लिखने में भी बुरा लगा। दुनिया की आधी आबादी का एक हिस्सा में भी हूँ।
बलात्कार शब्द किसी को भी अंदर से झंझोड़ कर रख देता है तो इनकी शिकार मासूम लड़कियों और महिलाओं की दशा, उनकी पीड़ा, उनके दर्द, उनकी चित्कार को समझने का सामर्थ्य हम में से किसी के पास नहीं। बीमारी का इलाज ढ़ूँढ़ने में हम अब भी विश्वास नहीं रखते लेकिन बीमारी के कारण,बहाने ढ़ूँढ़ने में हम पोथे-के पोथे भर डालेंगे। हैरानी, नहीं ये बहुत छोटा शब्द है- शर्मनाक कहना ठीक है। जब यह कहा जाने लगा कि लड़कियों की शादी की उम्र 18 से घटाकर 15 कर दो फिर भविष्य में किसी अबला का बलात्कार नहीं होगा। मुगलों के राज में जैसा हुआ करता था वही अब भी करना शुरू कर दो। जैसे वे अपनी बेटियों को पर्दे में रखते थे वैसे अब आप सब भी शुरू कर दो। 15 साल की उम्र में अपनी बेटियों की शादी कर अपने हाथों से कन्या दान के साथ-साथ उसके बलात्कार का प्रमाणपत्र भी आप ही दे दो क्योंकि 15 साल की कोई भी लड़की अपनी मर्जी से तो शादी करेगी नहीं। इन सबसे रेप रुकेगा नहीं बल्कि रेपिस्टों को और बढा़वा मिलेगा। एक और बात आजकल बड़ा गला फाड़-फाड़ कर कही जाती है, लड़कियों के छोटे-छोटे कपड़े, अश्लील कपड़े जिम्मेदार है इन कुकर्मों के।
मुझे एक दशक से ज़्यादा समय हो गया अपने वतन से दूर रहते हुए मगर इसकी मिट्टी से खुद को हमेशा जुड़ा ही पाया है इसलिए मार्डन इंडिया, डिवेलपिंग इंडिया, अतुल्य भारत की अभूतपूर्व उपलब्धियों को देख, सुन, पढ़, खुद को इसका हिस्सा समझती हूँ। लेकिन जब इसी मार्डन इंडिया, डिवेलपिंग इंडिया की पिछड़ी सोच, 21वीं शताब्दी में मध्यकालीन मानसिकता के बारे में सुन सिर शर्म से झुक जाता है। दुनिया की आधी आबादी को हमारे यहाँ अपनी मर्जी से कपड़े पहनने की भी आजा़दी नहीं और अभी हाल ही में हमने मनाया आज़ादी का 65वां साल। यदि ऐसी बातें कहने वाले यहाँ चीन में आकर देखे तो शायद बेहोश होकर ऐसे गिरेंगे कि उठने की कभी उम्मीद ही नहीं कर सकते। अगर यहाँ की लड़कियों के कपड़ों को देखा जाए तो हमारे देश में शायद यह कहा जाएगा कि लड़कियों को पैदा करना कानूनन जुर्म होगा और अगर बात कपड़ों की करें तो क्या साड़ी या सलवार-कमीज़ पहनने वाली लड़कियाँ इस घिनौने अपराध का शिकार नहीं हुईं ? एक बात और साड़ी को फैशन की दुनिया में सबसे सैक्सी परिधानों में गिना जाता है। फिर क्या कहना है उनका जो लड़कियों के कपड़ों पर सवाल खड़े करते हैं? पूरी तरह खुलापन है यहाँ चीन में और मेरा मानना है कि खुलेपन को अश्लील आप-हम जैसे लोग ही बनाते हैं। यह भी कहा जाता है कि आजकल की युवा पीढ़ी बहुत आज़ाद ख्यालों की है। उन्हें मान-सम्मान और मर्यादाओं का कोई ख्याल नहीं रहता। तो शराब यहाँ चीन में पानी से भी सस्ती है, महिलाएँ और पुरुष एक साथ पूरे परिवार के साथ पीते हैं लेकिन यहाँ लोग शराब पीकर सीमाएं नहीं लांघते। शराब यहाँ के लोग इतनी सुबह से पीना शुरू कर देते हैं जब हमारे देश में अधिकतर लोगों के यहाँ शायद आस्था चैनल चल रहा होता है। चीन की बसों और ट्रेनों में लोगों की इतनी ज्यादा भीड़ होती है कि एक-दूसरे से सट कर खड़े होना पड़ता है जिनमें महिलाएँ और पुरुष एक साथ यात्रा करते हैं लेकिन इतनी भीड़ में भी कोई किसी महिला के साथ दुर्व्यवहार करने की सोचता तक नहीं। खराब स्पर्श या बेड टच जैसी कोई हरकत नहीं होती यहाँ। ऐसा नहीं कि यहाँ महिलाएँ बिल्कुल भी जुर्म का शिकार नहीं होती लेकिन यहाँ दोषी को दंड मिलता है उसके शिकार को नहीं। लैंगिक समानता है यहाँ, जैन्डर डिसक्रिमिनेशन नहीं।
आज एक भारतीय होने के नाते मुझे ये कहते शायद बुरा नहीं लग रहा कि मैं यहाँ खुद को ज़्यादा सुरक्षित महसूस करती हूं। कहीं भी, कभी-भी अकेले आने-जाने में किसी प्रकार का डर या भय नहीं। ये विचार ही नहीं आता कि मैं अकेली कैसे जा सकती हूँ ?
फिर क्यों हैं हमारे देश में ऐसा? जरुरत है, समाज के मानसिक स्तर, पुरुषों के भीतर गहराई तक घर की हुई पुरुषवादी मानसिकता और महिलाओं को मात्र फिजिकल सैटिस्फेक्शन का इंस्ट्रूमेंट समझने की सोच को बदलने की। जिस समाज में महिलाओं को महज शारीरिक भूख शांत करने और बच्चे पैदा करने की मशीन के तौर पर देखा जाता है, जहां उनके जज्बातों का उसकी इच्छा-अनिच्छा का जरा भी ख्याल नहीं होता, सब कुछ पुरुषवादी सोच और सुविधा के अनुसार तय किया जाता हो, वहां रेप जैसे अपराध महज शादी करवा देने से नहीं रुकेंगे। महिला-पुरुष संबधों को लेकर हमारे समाज का दकियानूसीपन भी काफी हद तक रेप जैसी वारदातों के लिए जिम्मेदार है। बदलाव की ज़रुरत है और उसे जल्द होना चाहिए। इसकी शुरुआत किसी और से नहीं बल्कि आप-हम जैसे लोगों से ही होगी वरना देश की प्रगति पिछड़ी हुई, दकियानूसी सोच वाले लोगों से कैसे होगी?